Wednesday 12 April 2017

मेरी जान को बेवफा न कहना

sad man thinking alone shayari


ऐ ज़माने ये गुज़ारिश है तुझसे मेरी जान को बेवफा न कहना,
ऐ ज़माने ये गुज़ारिश है तुझसे मेरी जान को दगाबाज़ न कहना,
कमज़ोर मेरी मोहब्बत थी जो उसको दूर जाने दिया,
ऐ ज़माने ये गुज़ारिश है तुझसे मेरी जान पर कोई इलज़ाम ना लगाना।

मेरी मोहब्बत पर उंगली उठाने से पहले एक बार अपने गिरेबान में देख लेना,
कहीं तेरी ही साज़िश तो नहीं थी ये सोच लेना। 
क्यों  बनाये ऐसे दस्तूर की मोहब्बत को रुस्वा होना पड़ा,
ऐ ज़माने खुद से ये सवाल ज़रूर कर लेना। 

उसने बेइतहां प्यार किया फिर भी जुड़ा हो गयी,
उम्र भर साथ देने का वादा किया था फिर भी बीच सफर में खो गयी,
ऐ ज़माने ये तेरी ही खता है -
जो आज उसकी पाक मोहब्बत भी बदनाम हो गयी।

ऐ ज़माने ये गुज़ारिश है तुझसे मेरी जान को बेवफा ना कहना,
मेरी मोहब्बत पर ऊँगली उठाने से पहले एक बार अपने गिरेबान में देख लेना।

No comments:

Post a Comment